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व्यथित मन की पीड़ा, मन किसी को कैसे समझाए, कोई भी न

व्यथित मन की पीड़ा, मन किसी को कैसे समझाए,
कोई भी नहीं है अपना यहाँ, किस को अपना बताए।

हर पल ही ये जिंदगी, नए-नए रुप हमको दिखा रही,
समझ नहीं आ रहा हमें, हमसे क्या कहना चाह रही।

सुकून की तलाश में, इधर-उधर ही भटकती फिर रही,
किससे कहें, कि मन की पीड़ा हरपल बढ़ती ही जा रही।

वक्त नहीं है किसी के पास, किसी को वक्त देने के लिए,
खुद ही मरहम लगाना है हमें, अपने जख्म सीने के लिए। ➡ प्रतियोगिता संख्या - 06

➡ शीर्षक - मन की पीड़ा

➡ सुन्दर शब्दों से आठ पंक्तियों मे रचना लिखें

➡ समय सीमा- आज रात 10 बजे तक।
व्यथित मन की पीड़ा, मन किसी को कैसे समझाए,
कोई भी नहीं है अपना यहाँ, किस को अपना बताए।

हर पल ही ये जिंदगी, नए-नए रुप हमको दिखा रही,
समझ नहीं आ रहा हमें, हमसे क्या कहना चाह रही।

सुकून की तलाश में, इधर-उधर ही भटकती फिर रही,
किससे कहें, कि मन की पीड़ा हरपल बढ़ती ही जा रही।

वक्त नहीं है किसी के पास, किसी को वक्त देने के लिए,
खुद ही मरहम लगाना है हमें, अपने जख्म सीने के लिए। ➡ प्रतियोगिता संख्या - 06

➡ शीर्षक - मन की पीड़ा

➡ सुन्दर शब्दों से आठ पंक्तियों मे रचना लिखें

➡ समय सीमा- आज रात 10 बजे तक।