नापाक इरादे उसके थे जो कोई समझ ना पाया जहर क़ल्ब में लेकर उसने अपना जाल फैलाया मनमोहनी भोली सूरत पे लेकर मीठी सी मुस्कान आई थीं वो रहगुजर लूटने लोगों का ईमान नादान थे जो समझ ना पाए अपनी ज़िंदगी के अंज़ाम उसके लफ़्ज़ों से होकर मदहोश लोगों ने दे दिया ईमान ईमान निगल कर लोगों का अपनी भूख मिटाई अपनी दुनिया का अँधेरा वो इस दुनिया ले आई लौट गई वो अपनी दुनिया छोड़ असर लेकर ईमान इंसान ना इंसान रहा फिर फ़क़त रह गया बनके हैवान देख दूर से अट्ठहास कर रही दुनिया का वीभस्त हाल अब इंसान ही लगा बनाने उसके हिस्से का नया जाल उसके तिलिस्म को तोड़ने ‘वेद’ ने लिया एक हथियार अपने दिल में फिर से जगाया उसने सोया हुआ ईमान ♥️ Challenge-486 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ इस विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।