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'तुम' कभी न समझ सकोगे मन को मेरे 'स्त्री-मन' जो ठह

'तुम'
कभी न समझ सकोगे
मन को मेरे
'स्त्री-मन' जो ठहरा
और
 तुम 'पुरुष'
कठोरता से बने-सने
लबादा ओढ़े,
हृदयहीनता का
क्या जानोगे,पनपना प्रेम का
क्या देखोगे,
बहना ऑंसुओं का
क्या महसूस करोगे,
धड़कना हृदय का
क्या समझोगे
ख़ुद के दिल में
बस जाना किसी और का..!
Muनेश..Meरी✍️,🌹


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'तुम'
कभी न समझ सकोगे
मन को मेरे
'स्त्री-मन' जो ठहरा
और
 तुम 'पुरुष'
कठोरता से बने-सने
लबादा ओढ़े,
हृदयहीनता का
क्या जानोगे,पनपना प्रेम का
क्या देखोगे,
बहना ऑंसुओं का
क्या महसूस करोगे,
धड़कना हृदय का
क्या समझोगे
ख़ुद के दिल में
बस जाना किसी और का..!
Muनेश..Meरी✍️,🌹


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