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सुनो, मैं चाँद कैसे लाऊँ,ये पता नही मुझे, हाँ पर

सुनो, मैं चाँद कैसे लाऊँ,ये पता नही मुझे,

हाँ पर उसी शेप का पिज्जा कैसा रहेगा ?


क्या ख़याल है तुम्हारा,

गर मैं गुलाब के बदले मैं उसी रंग की एक लिपिस्टिक ला दूँ 
वो तो पसंद है ना तुम्हें !

और कैसा रहेगा गर पास ही के एक दुकान से 

मैं काजल की डिबिया लाकर सजा दूँ तुम्हारी 

बड़ी बड़ी आँखों को,
क्या गले से लगाओगे मुझे ?

हाँ पर मैं चाँद कैसे लाऊँ, ये पता नही मुझे !
सुनो, मैं चाँद कैसे लाऊँ,ये पता नही मुझे,

हाँ पर उसी शेप का पिज्जा कैसा रहेगा ?


क्या ख़याल है तुम्हारा,

गर मैं गुलाब के बदले मैं उसी रंग की एक लिपिस्टिक ला दूँ 
वो तो पसंद है ना तुम्हें !

और कैसा रहेगा गर पास ही के एक दुकान से 

मैं काजल की डिबिया लाकर सजा दूँ तुम्हारी 

बड़ी बड़ी आँखों को,
क्या गले से लगाओगे मुझे ?

हाँ पर मैं चाँद कैसे लाऊँ, ये पता नही मुझे !