केहर आपके लिए आँखे नहीं रोती कभी,आँसुओं से बना दरिया बनती हैं, दिल टूटे, या कोई छूटे, ग़म कहने का ज़रिया बनती हैं! होती है जब कभी लबों को ख़ामोश रखने की ज़रूरत, ये आँखे सब कुछ कह कर हसीन नज़रिया बनती हैं! अंदर दबा कर, कभी छुपा कर रखती है कितने समंदर, कभी कमजोर पंखुड़ियां, कभी मजबूत सरिया बनती हैं! कितने भी हो दर्द-ओ-ग़म, तकलीफ़ बेशुमार हो चाहे, आँखे कभी सुकून, कभी छुपाने की चुनरिया बनती हैं! Dedicating a #testimonial to Kehar Singh