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प्रवास समाज का अभिन्न व्यवहारिक अंग बन चुका है।इसक

प्रवास समाज का अभिन्न व्यवहारिक अंग बन चुका है।इसका विकास मजदूर ढूंढ रहा है।अकुशल मजदूर की विशेष मांग है।

अर्थात, अकुशल मजदूर का स्वर्ण युग!

सुदूर गांव से मजदूर पैसे के आशा में प्रवास करते हुए
जब निकट राजधानी पहुंचता है, तब वो थोड़ा ठहर के अपने ग्रामीण मजदूर भाई से पूछता है, 
अपना गांव राजधानी कब बनेगा?
उत्तर पाता है, जब विकास होगा।
एकाकी अवस्था में विश्वस्त हो वो फिर इतना ही बोल पाता है कि, फिर तो बहुत देर लगेगा?
उत्तर पाता है, हाँ!हमलोग नहीं देख पाएंगे।
उत्तर पा कर मजदूर का दर्शन शीघ्र दैनिक हो जाता है।
वो कहता है, मेरी बला से!
कुछ पैसे का दरकार हैं।इस बार कमा कर जायेंगे तो वापस नहीं आयेंगे।वहीं पर कुछ करेंगे।
पुनःउत्तर ही पाता है, हाँ!
मेरा भी मन अब यहां नहीं लगता, इतनी दूर अब नहीं आयेंगे।पर क्या करें, लाचारी में हमलोग अकुशल रह गये। प्रवास समाज का अभिन्न व्यवहारिक अंग बन चुका है।इसका विकास मजदूर ढूंढ रहा है।अकुशल मजदूर की विशेष मांग है।

अर्थात, अकुशल मजदूर का स्वर्ण युग!

सुदूर गांव से मजदूर पैसे के आशा में प्रवास करते हुए
जब निकट राजधानी पहुंचता है, तब वो थोड़ा ठहर के अपने ग्रामीण मजदूर भाई से पूछता है, 
अपना गांव राजधानी कब बनेगा?
उत्तर पाता है, जब विकास होगा।
प्रवास समाज का अभिन्न व्यवहारिक अंग बन चुका है।इसका विकास मजदूर ढूंढ रहा है।अकुशल मजदूर की विशेष मांग है।

अर्थात, अकुशल मजदूर का स्वर्ण युग!

सुदूर गांव से मजदूर पैसे के आशा में प्रवास करते हुए
जब निकट राजधानी पहुंचता है, तब वो थोड़ा ठहर के अपने ग्रामीण मजदूर भाई से पूछता है, 
अपना गांव राजधानी कब बनेगा?
उत्तर पाता है, जब विकास होगा।
एकाकी अवस्था में विश्वस्त हो वो फिर इतना ही बोल पाता है कि, फिर तो बहुत देर लगेगा?
उत्तर पाता है, हाँ!हमलोग नहीं देख पाएंगे।
उत्तर पा कर मजदूर का दर्शन शीघ्र दैनिक हो जाता है।
वो कहता है, मेरी बला से!
कुछ पैसे का दरकार हैं।इस बार कमा कर जायेंगे तो वापस नहीं आयेंगे।वहीं पर कुछ करेंगे।
पुनःउत्तर ही पाता है, हाँ!
मेरा भी मन अब यहां नहीं लगता, इतनी दूर अब नहीं आयेंगे।पर क्या करें, लाचारी में हमलोग अकुशल रह गये। प्रवास समाज का अभिन्न व्यवहारिक अंग बन चुका है।इसका विकास मजदूर ढूंढ रहा है।अकुशल मजदूर की विशेष मांग है।

अर्थात, अकुशल मजदूर का स्वर्ण युग!

सुदूर गांव से मजदूर पैसे के आशा में प्रवास करते हुए
जब निकट राजधानी पहुंचता है, तब वो थोड़ा ठहर के अपने ग्रामीण मजदूर भाई से पूछता है, 
अपना गांव राजधानी कब बनेगा?
उत्तर पाता है, जब विकास होगा।