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ना जाओ सनम, थोड़ा जाओ ठहर, नाम लिख दूं तुम्हारा, ज

 ना जाओ सनम, थोड़ा जाओ ठहर,
नाम लिख दूं तुम्हारा, जहाँ रेत पर।
इस सुहाने सफर की, ये सौगात है।
बिन तुम्हारे न हो अब, कोई बात है।
आओ मिलकर बनाएँ, यहाँ अपना घर।
          नाम लिख----–-–।
हम कहाँ थे कहाँ से, कहाँ आ गए।
बिन मांगे ही सारा, जहाँ पा गए।
अब तो छोटा सा लगने लगा ये शहर।
           नाम लिख–---–----।
देखो मछली फसी थी,  अभी जाल में।
लहरें उठने लगीं अब, उसी ताल में।
जहाँ सूखे में सालों, गए थे गुजर।
          नाम लिख----–-----।
काली कोयलिया बोली, इसी बाग में।
गुनगुनाते हैं भँवरा, नए राग में।
पापी पतझड़ भी, अब तो हुआ बेअसर।
         नाम लिख------------।

©Kalpana Tomar
  न जाओ सनम........
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