आ मेरे सिरहाने पे सर रख दे। ओ हमदम मेरे सिरहाने पे सर रख दे।। हुई अब नाराज़गी बहुत, तड़प अब ज्यादा हुई... बढ़ी दीवानगी बहुत,प्यास अब ज्यादा हुई... कहे तो चाँद को तेरे दर रख दे। आ मेरे सिरहाने पे सर रख दे।। ओ हमदम मेरे सिरहाने पे सर रख दे।। जवाब दे रही मेरी हर सांस तेरे बिन, की अब तो लौट आओ तुम, यही एहसास हैं तुम बिन, तू कहे तो गिरवी अपनी जान को रख दे। आ मेरे सिरहाने पे सर रख दे।। ओ हमदम मेरे सिरहाने पे सर रख दे।। ©Sanjeev Santosh Upadhyay AVANISH DWIVEDI Author shivam kumar mishra My_Words✍✍ pratima mishra Sachin Joshi