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White अरसे से बस एक ही सवाल है। रोज़ क्यों आता उसी

White अरसे से बस एक ही सवाल है।
रोज़ क्यों आता उसी का खयाल है।
बिना मौसम ये आसमां नहीं रोता।
मानता हूं, इश्क़ दो बार नहीं होता।
मसरूफियत में भी भूला नहीं हूं।
उसका हूं, जिसने कुबूला नहीं हूं।
वो इश्क क्यों हैं, ज़िद क्यों नहीं।
हज क्यों है, मस्जिद क्यों नहीं।
रात आती है, याद आती है।
अधूरी बात, बहुत तड़पाती है।
रोना है पर अश्क़ नहीं है।
दोतरफा मेरा इश्क़ नहीं है।
क्यों वो शख़्स इतना रूठा है।
क्यों मेरा हर अल्फ़ाज़ झूठा है।
सच का सबूत कैसे दिखाऊं।
हाथ में क्या कलेजा रख लाऊं।
मैं दुआ करूं, पत्थर ना माने।
फकीरी ए इश्क, वो क्या पहचाने।
कैसे दिखाऊं मुझे मुझमें
वो टूटे लहजे, बिखरे एहसास 
वो जज्बातों के गहरे तहखाने।
यहां उसके सिवा कोई बात नहीं है।
मेरा नाम तक वहां याद नहीं है।
नाउम्मीदी बची है, वो बेवफ़ा है।
मन मेरा अहल-ए-सफ़ा है।
मैं लम्हे अपने वसूला नहीं हूं।
मसरूफियत में भी भूला नहीं हूं।
मानता हूं इश्क़ दोबारा नहीं होता
आज भी उसी का हूं,
जिसने कुबूला नहीं हूं।।

©Rohit Bhargava (Monty) #Thinking  urdu poetry urdu poetry urdu poetry sad sad poetry love poetry in hindi
White अरसे से बस एक ही सवाल है।
रोज़ क्यों आता उसी का खयाल है।
बिना मौसम ये आसमां नहीं रोता।
मानता हूं, इश्क़ दो बार नहीं होता।
मसरूफियत में भी भूला नहीं हूं।
उसका हूं, जिसने कुबूला नहीं हूं।
वो इश्क क्यों हैं, ज़िद क्यों नहीं।
हज क्यों है, मस्जिद क्यों नहीं।
रात आती है, याद आती है।
अधूरी बात, बहुत तड़पाती है।
रोना है पर अश्क़ नहीं है।
दोतरफा मेरा इश्क़ नहीं है।
क्यों वो शख़्स इतना रूठा है।
क्यों मेरा हर अल्फ़ाज़ झूठा है।
सच का सबूत कैसे दिखाऊं।
हाथ में क्या कलेजा रख लाऊं।
मैं दुआ करूं, पत्थर ना माने।
फकीरी ए इश्क, वो क्या पहचाने।
कैसे दिखाऊं मुझे मुझमें
वो टूटे लहजे, बिखरे एहसास 
वो जज्बातों के गहरे तहखाने।
यहां उसके सिवा कोई बात नहीं है।
मेरा नाम तक वहां याद नहीं है।
नाउम्मीदी बची है, वो बेवफ़ा है।
मन मेरा अहल-ए-सफ़ा है।
मैं लम्हे अपने वसूला नहीं हूं।
मसरूफियत में भी भूला नहीं हूं।
मानता हूं इश्क़ दोबारा नहीं होता
आज भी उसी का हूं,
जिसने कुबूला नहीं हूं।।

©Rohit Bhargava (Monty) #Thinking  urdu poetry urdu poetry urdu poetry sad sad poetry love poetry in hindi