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Sindoori (Part-2) यूं तो पर्वत-पर्वत भटका किसी शि

Sindoori (Part-2)

यूं तो पर्वत-पर्वत भटका
किसी शिलाखंड से जा अटका
क्या दर्पण है मुझ में तेरा
जो ताक रहा लेकर दूरी
अब कहूं तो कैसे कहूं उसे
वो मूकबधिर पाषाण रहा
मैं ढूंढ रहा था सिंदूरी
बेजान हुआ मरु मिट्टी सा
रुखा सूखा संसार लगे
जो चलूं तो पल-पल आग लगे
रुकूं तो गहरी प्यास लगे
कच्ची डोर पकड़ के झूला
झूल रही थी मजबूरी
कोई हवा से मद्धम-मद्धम मानो
लूट रहा था सिंदूरी

©Gautam
  Sindoori (Part-2)
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Gautam

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