कभी डरती थी ऐ जिन्दगी मैं भी वक्त बेवक्त तेरे दिये जख्मों से, कभी सोचती थी कि संघर्ष कितना हैं मेरी इस छोटी सी जिंदगी में, कभी घंटों बैठे शून्य को निहारती थी मेरी नजरें शायद मेरे सवालो के जवाब हो कही छुपा इसी में , कभी मेरी तरह ही खामोशी ओढ़ लेती थी मेरी कलम कभी मेरी तरह ही बहुत कुछ बोल देना चाहती थी पर वक्त के साथ तुमने ही सिखाया है ऐ जिन्दगी कि हो चाहे कितनी भी संकट की घड़ी अब ना आंसू बहाना है जिंदगी है संघर्ष तो क्या हमें उस संघर्ष में भी मुस्कुराना है। indu mitra #Time