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गजल झूठा दबदबा झूठा रुआब लिए फिरता है वो फसादी है

गजल
झूठा दबदबा झूठा रुआब लिए फिरता है
वो फसादी है नया टकराव लिए फिरता है

भला समंदर भी किसी ने उलीचा है कभी
 मन मे फालतू के सवाल लिए फिरता है

शहर के हाकिमों को मयस्सर नही है और
चमन का मुहाफिज गुलाब लिए फिरता है

बांटने वाले बांट रहे हैं नफरतों के पर्चे मगर
एक काफिर प्यार का पैगाम लिए फिरता है

हक की आवाज फलक से आयेगी जरूर
अब हर आदमी यही ख्याल लिए फिरता है

यहाँ न जिस्म है न साया बाकी है "आलम"
क्यों इन मंजारों पर चराग लिए फिरता है

मारूफ आलम सवाल लिए फिरता है/गजल
गजल
झूठा दबदबा झूठा रुआब लिए फिरता है
वो फसादी है नया टकराव लिए फिरता है

भला समंदर भी किसी ने उलीचा है कभी
 मन मे फालतू के सवाल लिए फिरता है

शहर के हाकिमों को मयस्सर नही है और
चमन का मुहाफिज गुलाब लिए फिरता है

बांटने वाले बांट रहे हैं नफरतों के पर्चे मगर
एक काफिर प्यार का पैगाम लिए फिरता है

हक की आवाज फलक से आयेगी जरूर
अब हर आदमी यही ख्याल लिए फिरता है

यहाँ न जिस्म है न साया बाकी है "आलम"
क्यों इन मंजारों पर चराग लिए फिरता है

मारूफ आलम सवाल लिए फिरता है/गजल
maroofhasan2421

Maroof alam

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