Nojoto: Largest Storytelling Platform

सुखी डाल और लाचार बुढ़ापा दोनों ही रुलाते है, आज ह

सुखी डाल और लाचार बुढ़ापा
दोनों ही रुलाते है, आज हम
आपको दोनो की व्यथा सुनाते
है, वृक्ष कहे खुद से कभी मेरा
भी दिन हूवा करता था जब में
भी हरा भरा रहता था, मेरी
 शीतल छाया में भी पंचायती
मेले लगते थे, बच्चे मेरी
शाख पर बैठकर झूला झूला
करते थे,हर कोई आकार धूप
से मेरी छांव को पाता था अब
पर अब में सूख चुका हूं, अपने
बुढ़ापे से टूट चुका हूं,हर कोई
मुझे देख कर आज ढहाना चाहता
है, मेरे वूजद को जड़ से मिटाना
चाहता है, खाली जगह पर अपना
आशियां बसाना चाहता है,यही
हाल है बूडापे का,मत पिता उम्र भर
कमाए अंत समय जब न कमा पाए
बच्चे बहु को भार लगता है, उनको
रखने में कष्ट होता है, पीछा उनका
कब छूटे, सांसे उनकी कब टूटे कब
माया हाथ आए उनके ऐसा सोच
कुछ लोग रखते है, अपने बृद्धो को
वो लोग भोज समझते है,पर ये चक्र
नित घूमता है, आज वृद्ध मात पिता
की तो कल उनकी भी भारी है, वक्त
के हाथ में हर शख्स के लिए नई नई
सी आरी है

©पथिक
  #alone old age

#alone old age #कविता

279 Views