अपने पूर्ण अवस्था में मेरे पुष्प का आकार मेरे पंखुड़ियों का झुकाव और वो स्नेहशील बंधन गुम्बज का मध्य मेरे आजादी देता है, बिखरना मेरा आत्मा है युग से मैं,महक लिए, जल लिए झड़ता हूँ बिखरता हूँ, विस्तार मेरा आचरण है विभाजन मेरा पूण्य है इस आत्मा में जीता हूँ गुलाब जल पीता हूँ। बेसब्र मैं, देखो... कितना सब्र रखती हूँ , मैं तुमसे... 'मोंगरे सा इश्क़' करती हूँ । ************************** जानती हूँ... मैं चाय बेहद गरम है , पर... उसकी...