हम सब खानाबदोश हैं कोई टिकता नहीं कहीं सब ठिकाने बदलते हैं घर के पते, कामकाजी पते कभी कुनबे बदलते हैं फर्क है तो इतना हम अभागे कम हैं बेहतर रैनबसेरों वाले बिस्तर, खाना, छत वाले हैं कहीं ज़्यादा अभागे हैं वो जो दिन भर पटरियों पर चले रात को नींद में कट मरे आंकड़े बनकर रह गए (नमिता की कलम से) #kavita #politics #khanabadosh #tragic #yqbaba #yqdidi