इंसान का दिमाग़ एक कशकोल है, जिसे हर वक़्त ख़यालों की चाह है, वो किताब की शक्ल में मिले या अपने आस- पास से मगर कोई भी किताब के थॉट्स उस कशकोल से ज़्यादा मिक़दार में होंगे तो इंसान पर वो थॉट्स हावी हो जाएंगे। मेरा ये मानना है कि किताब कभी दिमाग़ पर हावी नही होनी चाहिए। हमारा दिमाग़ इतना मेच्योर होना चाहिए कि कुछ भी पढ़े पर लास्ट में हमारा नज़रिया उसके मुकाबले बराबरी पर खड़ा हो। ©Tarique Usmani #Books