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मैं एक पंछी मारा मारा फिरता हूंँ ना किधर जगह है म

मैं एक पंछी मारा मारा फिरता हूंँ 
ना किधर जगह है
मेरा आशियाँना बनाने की
फिर लाचार होकर किसी के घर मे अपना आशियाँना बनाता हूँ
जब बच्चों को छोड़कर जाता हूँ घोसले मे
चिंता में डूबा रहता हूँ
कोई मेरे इस आशियाँने को कर देना तितर-बितर
मैं एक पंछी मारा मारा फिरता हूँ

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  पंछी की व्यथा# पंछी का दर्द #पँछी
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पंछी की व्यथा# पंछी का दर्द #पँछी #कविता

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