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प्रकृति से खिलबार क्यूँ ? भोगने को खुद सुख हट

प्रकृति से खिलबार क्यूँ ?
    
भोगने को खुद सुख हटा दिया वन और लगा दिया कारखानो को 
                    भरने को खुद का पेट लेते हो बेजूबां के जानो को 
करते हो  प्रशन अब की ये नारसंहार क्यूँ ?

      ऊतर है प्रकृति से खिलबार क्यूँ ?

हरी भरी लहलहाती  थी कभी ये  धरती तुमने इसे समशान बनाया 
            छीन माशुम जानवारो का घर है अपना आशियान सजया 
 अब कहते हो मानवता पर प्रहार क्यूँ ?

     ऊतर है प्रकृति से खिलबार क्यूँ ?   

धोने जो पाप हमारी आयी थी गंगा तुमने उन्हे भी कर डाला गंदा 
           अब भी है समय सिख लो य़ा लोभ ने कर डाला है अंधा 
फिर रोना मत की हमारे जीवन मे विकार क्यूँ ?

     बस यही कहूँगा ऊतर है प्रकृति से खिलबार क्यूँ ?


                                           #MSwrites

©Manish Kumar Singh #alone
प्रकृति से खिलबार क्यूँ ?
    
भोगने को खुद सुख हटा दिया वन और लगा दिया कारखानो को 
                    भरने को खुद का पेट लेते हो बेजूबां के जानो को 
करते हो  प्रशन अब की ये नारसंहार क्यूँ ?

      ऊतर है प्रकृति से खिलबार क्यूँ ?

हरी भरी लहलहाती  थी कभी ये  धरती तुमने इसे समशान बनाया 
            छीन माशुम जानवारो का घर है अपना आशियान सजया 
 अब कहते हो मानवता पर प्रहार क्यूँ ?

     ऊतर है प्रकृति से खिलबार क्यूँ ?   

धोने जो पाप हमारी आयी थी गंगा तुमने उन्हे भी कर डाला गंदा 
           अब भी है समय सिख लो य़ा लोभ ने कर डाला है अंधा 
फिर रोना मत की हमारे जीवन मे विकार क्यूँ ?

     बस यही कहूँगा ऊतर है प्रकृति से खिलबार क्यूँ ?


                                           #MSwrites

©Manish Kumar Singh #alone