समझ नहीं आता आज कल में क्या हो गई हूं, पत्थर हो गई हूं या पिघलकर मोम हो गई हूं।। अक्सर तनहा रात में अनजानी सी याद लेकर, एक कोने में बैठकर पहरो पहर में रो गई हूं।। कोई ग़म कोई गिला शिकवा कुछ भी तो नहीं, फिर क्यों में ये हसीं छोड़ उदासियो की हो गई हूं।। मेरा हाल क्या है मेरी कलम भी ना कह पाती हैं, सबकी कहानी लिखी अपनी में ख़ामोश हो गई हूं।। क्या कश्मकश है अब तुम्हे क्या समझाऊं में, ख्याबो को जिंदा रखते रखते में दफ़न हो गई हूं Ms.(P.Gurjar)✍️ में😖 kya ho gai hu 😖