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मोह, माया के सारे पाश मैं भी तोड़ सकता काश। चल रहा

मोह, माया के सारे पाश
मैं भी तोड़ सकता काश।
चल रहा होता आध्यात्मिक पथ पर
होता सवार दिव्यता के पावन रथ पर।
कई संत हुये जो थे अनपढ़, अकिंचन
पहुँचे वे उच्च शिखर, कर जीवन चिंतन।
जानते सब हैं, जीवन है क्षण भंगुर
पर आत्मसात करते नहीं यह गुर।
भौतिकता की चकाचौंध से हो भर्मित
करतें स्वं की आध्यात्म भाव को दमित
जागो हे मानव, फिर करो नव लक्ष्य संधान
जिस उद्देश्य के लिये मिला ये जीवन महान।

©Kamlesh Kandpal
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