..... ( संदर्भ :- यह रचना Rohit Mishra जी के द्वारा लिखी गयी है ) कभी- कभी हर कविता के बाद एक गहरी खामोशी सी छा जाती है। कुछ तो लौट जाते हैं चुपचाप कविता पाठ के बाद और घर जाकर व्यक्तिगत रूप से मेल लिखते हैं, मन का हाल लिखते हैं। कोई डाक द्वारा चिट्ठी भेजते हैं। वहीं से कोई दिल का कनेक्शन बनता है और फिर कोई दोस्ती बनती है, कोई रिश्ता जुड़ता है। कविताओं की कमाई यही है उसने इन कुछ सालों में मनुष्य कमाए हैं। भारत में भी अलग-अलग हिस्सों में छोटे-छोटे ग्रुप में कविता पाठ करते और बातचीत करते वक्त लोगों को इस तरह जुड़ते देखा है लेकिन कभी नहीं समझ पाता बड़े आयोजन, बड़े शहर और सभागार में भूख और जद्दोजहद की कविता पर लोग वाह-वाह करते हुए तालियां क्यों पीटते हैं? क्यों मजदूर की भूख और मौत पर कविता लिखते वक्त किसी कवि की आंख का कोर नहीं भीगता? क्यों प्रसव के बाद भी खून से लथपथ सड़क पर चलती एक स्त्री के बारे लिखते हुए किसी कवि का दिल नहीं रोता? और कविता सुनते वक्त एक साथ बहुतों की आंखें भी क्यों नम नहीं हो पाती? क्यों कविता लिखना और छपना यहां कविता की अपनी ताकत नहीं, जुगाड़ समझा जाता है? क्यों साहित्य की अपनी अलग राजनीति चलती रहती है? और क्यों लाख लिखने पर भी ज़मीन पर किसी का जीवन नहीं बदलता, वह किसी को छू कर नहीं गुजरता?