नमस्कार मित्रोंं,
एक लघुकथा...जो बताती है कि लोगो की कथनी और करनी में अंंतर कैसे होता है। खासकर उन लोगों में जो जिम्मेदारी वाले पदों पर है।
शीर्षक - आधुनिक दहेज विरोधी
समाज कल्याण विभाग के मंंत्री दहेज के विरोध में भाषण दे रहे थे। वो बोल रहे थे कि दहेज लेना और देना कानूनी अपराध है। दहेज की माँग करने वाला सीधा नरक में जाता है। हमें दहेज के बजाय गुणकारी वर वधु की चाह रखनी चाहिए।
तभी उनकी पत्नी का फोन आता है। वो कहती है कि पंड़ितजी रिश्ता लेकर आये है, लड़की प्राइवेट अध्यापक है पर वो दहेज में कुछ नहीं दे सकते हैं।
तभी मंत्रीजी तपाक से बोले कि अभी मना कर दो इस रिश्ते के लिये। अध्यापक को लाकर क्या उसकी पूजा करेंगे। हमें सिर्फ पैसे चाहिए, अाखिर हमनें भी तो पूरे पच्चीस लाख खर्च किये है रोहित को डॉक्टर बनाने में। #Books