मैं कैसे जी रहा हु, मैं अपने आप जानता हु! पिगल गये है वो लम्हे सारे, बुरे वक्त का साथी हो गया हु... बहार से तो कोहिनूर दिखराह हु, लेकीन अंदर से कोयला हो चुका हु! इन लम्हो का क्या है, आते रहेंगे,जाते रहेंगे, मैं तो अपनी खुद कि जिंदगी जी रहा हु; अगर इनको भी मेरी ही तगदिर लिखना है, तो उसके लिये भी मैं तयार हु! -✍️🏼RJ Amol #तकदिर#life कवि जय पटेल दीवाना अश्लेष माडे (प्रीत कवी )