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पत्नी जो पिया मन न भाए, रूप,गुण और प्रेम की गागर,

पत्नी जो पिया मन न भाए,
रूप,गुण और प्रेम की गागर,
उसकी निस दिन ही ढह जाए।
घूंट प्रेम के पति के मुख से,
जो एक पल भी पी न पाए,
उसकी अगन कोई जल न बुझाए।
हर सुख उसकी तपन बढ़ाए,
अमृत भी तृप्ति न दिलाए,
जो न पिया आलिंगन पाए।
क्या कोई उसकी चित्त सजाए,
जो पिया का सानिध्य बसाए,
आँखों से बस अश्रु बहाये।
रोकर अपनी प्यास बुझाए।। #पिया मन
पत्नी जो पिया मन न भाए,
रूप,गुण और प्रेम की गागर,
उसकी निस दिन ही ढह जाए।
घूंट प्रेम के पति के मुख से,
जो एक पल भी पी न पाए,
उसकी अगन कोई जल न बुझाए।
हर सुख उसकी तपन बढ़ाए,
अमृत भी तृप्ति न दिलाए,
जो न पिया आलिंगन पाए।
क्या कोई उसकी चित्त सजाए,
जो पिया का सानिध्य बसाए,
आँखों से बस अश्रु बहाये।
रोकर अपनी प्यास बुझाए।। #पिया मन