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पल्लव की डायरी परिंदे भी अब,जमी पर आस छोड़ चुके है

पल्लव की डायरी
परिंदे भी अब,जमी पर आस छोड़ चुके है
महँगाई में दाने भी दम तोड़ चुके है
स्वार्थ की कल्पना ही किया करू
दान धर्म सब यहाँ पर बंद
चंद रहीशो के यहाँ, जीवन यापन के
सारे साधन कैद हो चुके है
जिंदा दिली गरीबो में ही थी जिंदा
 जोअपने हिस्से में से,जिंदा परिंदों को रखते थे
दिल बड़ा करके,नेकी की रस्म अदा करते थे
                                               प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"
  दिल बड़ा करके नेकी की रस्म अदा करते थे

दिल बड़ा करके नेकी की रस्म अदा करते थे #कविता

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