समझ दिया क्यूँ मुझको इतना कि हर बार मैं ही समझती हूँ सहनशीलता दिया क्यूँ इतना कि हर बार मैं ही सब सहती हूँ भाव सहेज का दिया क्यूँ इतना हर रिश्ता सहेज मैं रखती हूँ भूलने की आदत इतनी क्यूँ दी हर शख्स की गलती भूला करती हूँ अदा सिर्फ मुस्कुराने की क्यूँ दी दर्द में भी मैं हँसती रहती हूँ रूह तक को भी सब आंसू दे जाते मुस्कान चेहरे पर सदा मैं रखती हूँ दिल मेरा क्यूँ इतना बड़ा बनाया दफन राज हर शख्स के कर देती हूँ ज्योति आंखों में इतनी भी क्यूँ दी छलते है सब,पर अंधी बनी मैं रहती हूँ ©विजय #Women