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माना मैं कि दर्द और नफरत की पाकीज़गी से निखरा अल

माना मैं कि 
दर्द और नफरत की पाकीज़गी से निखरा 
अल्फ़ाज़ हूं 
पर ये अल्फ़ाज़ भी निस्तब्ध है 
आपकी रचना के सामने 
यूं तो मैं सब की रचना पढ़ता रोज
पर आपकी रचना पढ़ 
ऐसा लगता कि मैं उसे जी रहा हूं
बहत कुछ सीखा हूं 
आपकी रचना कि पनाहगाह में रहकर 
हो मुक्कमल आपकी हर ख्वाहिश 
कि दुआं है मेरी उस रब से  Dedicating a #testimonial to Scarlet
माना मैं कि 
दर्द और नफरत की पाकीज़गी से निखरा 
अल्फ़ाज़ हूं 
पर ये अल्फ़ाज़ भी निस्तब्ध है 
आपकी रचना के सामने 
यूं तो मैं सब की रचना पढ़ता रोज
पर आपकी रचना पढ़ 
ऐसा लगता कि मैं उसे जी रहा हूं
बहत कुछ सीखा हूं 
आपकी रचना कि पनाहगाह में रहकर 
हो मुक्कमल आपकी हर ख्वाहिश 
कि दुआं है मेरी उस रब से  Dedicating a #testimonial to Scarlet
kunalkarn5063

Author kunal

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