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इज़हार–ए–इश्क़ (ग़ज़ल) आरज़ू ये है की इज़हार–ए–इश

इज़हार–ए–इश्क़ (ग़ज़ल)

आरज़ू ये है की इज़हार–ए–इश्क़ कर दें।
अल्फाज़ चुनते हैं तो लम्हें बदल जाते।

इज़हार–ए–इश्क़ दिल का अजब हाल कर दे।
आँखें तो रजामंद हैं लेकिन लब सोच रहे।

इज़हार–ए–इश्क़ करना दिल को नहीं आ रहा।
लेकिन इस दिल को बिन तेरे रहना भी नहीं आता।

इज़हार–ए–इश्क़ का मज़ा तब मुझे आए।
जब मैं ख़ामोश रहुँ तेरा दिल बेचैन रहे।

तेरे लिपट कर आज़ दिल इज़हार–ए–इश्क़ कर रहे।
तेरे बाहों के पनाह में आकर तुझ में खो रहे।




 #kkpc26 
#कोराकाग़ज़ 
#collabwithकोराकाग़ज़ 
#विशेषप्रतियोगिता 
#kkdrpanchhisingh1
इज़हार–ए–इश्क़ (ग़ज़ल)

आरज़ू ये है की इज़हार–ए–इश्क़ कर दें।
अल्फाज़ चुनते हैं तो लम्हें बदल जाते।

इज़हार–ए–इश्क़ दिल का अजब हाल कर दे।
आँखें तो रजामंद हैं लेकिन लब सोच रहे।

इज़हार–ए–इश्क़ करना दिल को नहीं आ रहा।
लेकिन इस दिल को बिन तेरे रहना भी नहीं आता।

इज़हार–ए–इश्क़ का मज़ा तब मुझे आए।
जब मैं ख़ामोश रहुँ तेरा दिल बेचैन रहे।

तेरे लिपट कर आज़ दिल इज़हार–ए–इश्क़ कर रहे।
तेरे बाहों के पनाह में आकर तुझ में खो रहे।




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