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ऐ मुकद्दर जब हमारी जनाजे निकले, तो वो गली वो शाम ह

ऐ मुकद्दर जब हमारी जनाजे निकले, तो वो गली वो शाम हो,
वो लोग भी आए, जिनके लिए यह जनाजे की काम हो,
उस जनाजे मे यह पूकार भी हो,
हम उतने भी खराब नहीं, फिर भी बदनाम सरेआम हो, 
हां हम अपने मान के लिए जीते है, 
फिर क्यो लांघु अपने शान को
अखिर आदमी हू क्यो सहता रहू अपमान को.. ऐ मुकद्दर जब हमारी जनाजे निकले...
ऐ मुकद्दर जब हमारी जनाजे निकले, तो वो गली वो शाम हो,
वो लोग भी आए, जिनके लिए यह जनाजे की काम हो,
उस जनाजे मे यह पूकार भी हो,
हम उतने भी खराब नहीं, फिर भी बदनाम सरेआम हो, 
हां हम अपने मान के लिए जीते है, 
फिर क्यो लांघु अपने शान को
अखिर आदमी हू क्यो सहता रहू अपमान को.. ऐ मुकद्दर जब हमारी जनाजे निकले...