साड़ी क्यों नहीं पहनती तुम? पहना करो, अच्छी लगती हो सुखे पत्तों के बीच, गुलाब की पंखुड़ी लगती हो शायद तुम्हें पता नहीं नज़रें बहुत सी तुम पर रहती हैं लेकिन उत्सवों में तुम आंखों का नूर बन उभरती हो देखने को नजारे और भी है दिल बहलाने के लिए फसाने और भी हे मगर तुम्हारे शबाब जैसा आफ़रीन पूरे कयानात में नहीं साड़ी के पल्लू को संभालती मेरे ख़्वाबों की बेचैनी लगती हो साड़ी क्यों नहीं पहनती तुम? पहना करो, अच्छी लगती हो ©Akhil G... #Thinking #Love #pyaar #Mohbbat #eshq #Couple