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पल्लव की डायरी मन की हजारों आँखों हो गयी ख्वाबो म

पल्लव की डायरी
मन की हजारों आँखों हो  गयी
ख्वाबो में खोयी रहती हूँ
पँख लगाकर उड़ानों के
दिन रात बेचैन रहती हूँ
कुछ हद भी होती है पाने की
सोच सोच कर थकती हूँ
रहना चाहती हूँ अपनी मर्यादा में
दायरे में सिमटना चाहती हूँ
पागलपन मन का देखो
सीमाओं से परे जाकर
प्रताड़ित हर दम करता रहता है
                                           प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"
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