कोरा काग़ज़ कवि सम्मेलन ( दर्द) जब मैं थी दर्द से बेहाल, हिम्मत छोड़ रही थी साथ। हर पल जीवन का था भारी, अनजानी थी एक बीमारी। दर्द जैसे कि एक जहर, शरीर पर बरसा कहर। नही टूटा ईश्वर में विश्वास, फिर जगी जीवन में एक आस। एक दवा जो थी रामबाण, मिल गया दर्द से आराम। मुझे मेरे परिवार में संभाल लिया, उस परिस्थिति से उबार लिया। जब भी वह दौर याद आता है, मन अंदर तक सिहर जाता है। प्रविष्टि- ३ जब मैं थी दर्द से बेहाल, हिम्मत छोड़ रही थी साथ। हर पल जीवन का था भारी, अनजानी थी एक बीमारी।