ख़त्म क्यों हो न पाई ग़रीबी ? आज भी है ग़रीबी ग़रीबी || आपकी सादगी सादगी है | सादगी है हमारी ग़रीबी || आदमी कुछ भी कर बैठता है | जब कभी भी सताती ग़रीबी || उम्र से लग रहा है वो बूढ़ा | ओढ़ उसने जो रक्खी ग़रीबी || बेटियों की तरफ़ देखता हूँ | नोचती मुझको मेरी ग़रीबी || बात बढ़- बढ़ के सब बोलते हैं | क्या किसी ने हटा दी ग़रीबी ? मर गया वो ग़रीबी में आख़िर | पर न मर पाई उसकी ग़रीबी || अपने अख़लाक़ से गिर न जाऊं | इससे अच्छी है प्यारी ग़रीबी || काम आती सियासत में अक्सर | ये हमारी तुम्हारी ग़रीबी ई