*उस दिन में बड़ी हो गयी थी* जिस दिन "माँ ने गोद" में उठना छोड़ दिया था शायद उस दिन में बड़ी हो गयी थी जिस दिन "पापा ने उंगली" पकड़ना छोड़ दिया था शायद उस दिन में बड़ी हो गयी थी जिस दिन में "बाइक" पर पापा के पीछे बैठी थी शायद उस दिन में बड़ी हो गयी थी जिस दिन में "पहली बार स्कूल" गयी थी शायद उस दिन में बड़ी हो गयी थी जिस दिन में पहली बार "घर पर अकेली" रही थी शायद उस दिन में बड़ी हो गयी थी जिस दिन मैंने अपने लिए "पहली बार मैगी" बनाई थी शायद उस दिन में बड़ी हो गयी थी जिस दिन में पहली बार "घर से दूर" गयी थी शायद उस दिन में बड़ी हो गयी थी जिस दिन मैंने अपनी "परेशनी माँ को बतानी" छोड़ दी थी शायद उस दिन में बड़ी हो गयी थी जिस दिन में "दर्द छिपाना" सीख लिया था शायद उस दिन में बड़ी हो गयी थी जिस दिन मैंने "इंसान को पढ़ना" सीख लिया था शायद उस दिन में बड़ी हो गयी थी जिस दिन पापा ने "मेरा हाथ" किसी और शख्स के हाथ में थामा था शायद उस दिन में बड़ी हो गयी थी जिस दिन मैंने पहली बार अपने लिए "माँ" सुना था शायद उस दिन में बहुत बड़ी हो गयी ©️Ananya #poem#writtenbyheart#selflove#girlpower#quoteoftheday#female#pain#feelings#relatable