तंग होती मुहब्बत में,नफरतों का उबाल है, मजहब के नाम पे,फिर से दंगा बवाल है//१ बुधिया है,सोच में,धनिया तो मालामाल है, जनता के सामने रोजी_रोटी,फिर से सवाल है//२ शिकवा यही कि तेरे वादों में आ गए,तुझपे जो था यकी,उसका अब फिर से मलाल है//३ अपना समझके सौपी ये हुकुमरानी जिनको, अब वो समूची जनता के फिर से दलाल है//४ वो मसले_मसाइल जो अब तक हल ना हो सके, महंगाई,बेरोजगारी,कालाबाजारी,फिर से निहाल है// "शाम"इक शरारे से लगाए बैठे हिफाजत की आस हम,खुदा खैर करे,अब ये कैसा फिर से ख्याल है//६ शमीम अख्तर/शमा writes ✍️ ©shama write तंग होती मुहब्बत में,नफरतों का उबाल है,मजहब के नाम पे,फिर से दंगा बवाल है//१ बुधिया है,सोच में,धनिया तो मालामाल है,जनता के सामने रोजी_रोटी,फिर से सवाल है//२ शिकवा यही कि तेरे वादों में आ गए,तुझपे जो था यकी,उसका अब फिर से मलाल है//३ अपना समझके सौपी ये हुकुमरानी जिनको,अब वो समूची जनता के फिर से दलाल है//४