न डर था जमाने का न डर बीते कल का वो धुप भी ढल जाते थे जब सर पर होता छाया मां कि आंचल का पापा के साथ वो पक्की वाली यारी जो हर बार कहते थे सब मैं देख लूंगा बस तु कर अपनी तैयारी घर पर मां लाडला बेटा कहकर बुलाती थी रोज खुद सोने से पहले मुझे सुलाती थी वो पापा कि कंधे कि सवारी हां याद है मुझे जब दुर उन्होंने ने भेजा तो आंख उनके भी थी भारी वो दोस्त जो हमेशा आ जाया करते खेलने के लिए मुझे बुलाने सबसे किमती पल थे वो अनमोल थे वो याराने पर अब वक्त ढल चुका है बीत गए सारे किस्से पुराने अब न चाह कर भी बढ रही जिम्मेदारी है अब समझ में आया जिंदगी चलती का नाम गाड़ी है चलते रहीए जनाब जबतक कहानी जारी है by Suraj Prakash sah ©Ek lamha Safar ka #Family #Mother #father #bonding