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यूं चल पड़ा हूँ मैं मंजिल का ठिकाना नहीं रास्ते नज


यूं चल पड़ा हूँ मैं मंजिल का ठिकाना नहीं
रास्ते नजर आते हैं, पर कहाँ जाना है पता नहीं
कुछ लम्हें ठहर कर ये दुनिया भी देखी है मैंने विशाल
कुछ पुराने मित्र हैं यहां, कुछ नये यार भी
जिंदगी की इस सफर मे
मां-बाप की डांट भी है, मां-बाप का प्यार भी
बचपन की मिठास हैं, शरारत भरी किस्से भी
सात साल का जेल कहों या सात साल की जन्नत भी
जवानी के कुछ किस्से हैं, हिस्से में घर की जिम्मेदारी भी
रिश्तेदारों की ताने भी हैं, पर भाई-बहन का प्यार भी
समाज के कुछ सवाल भी है, दोस्तों के पास उनके जवाब भी
घर अपना बनाने को, घर से ही हूं मैं दूर भी
रास्ते अकेले काट रहा हूँ, साथी की तलाश भी
चल पड़ा हूँ मैं मंजिल का ठिकाना नहीं
रास्ते नजर आते हैं, पर कहाँ जाना है पता नहीं...

©Hrishi Vishal 007
  #यूं_चल_पड़ा_हूँ_मैं_मंजिल_का_ठिकाना_नहीं