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सड़क पर निकले तो, ताक में बैठी, भयंकर बीमारी है आ

सड़क पर निकले तो, ताक में बैठी, भयंकर बीमारी  है
आग लगी है पेट में, गरीब पर, भूख की विपदा भारी है

सुरक्षित है वो, जो घर में ही रुक गया 
गरीब भूखा, जाके हर दर पर झुक गया

वैसे तो उसे कहते है, अनपढ़ सब मगर
मगर बड़ी बात सूझी, उसे बीती रात में
जो गाड़ियां छिड़क रहीं, दवाईयां गली गली
साथ क्यों नहीं लाती, कुछ रोटियां भी साथ में

हमसे घर में सुकून से, बैठा भी नहीं जा रहा 
मजबूर शहर से, गांव को पैदल चला जा रहा 
कंधे पर डेढ़ साल का, है उसने बीमार बच्चा रखा 
हाथ में सुखी रोटी, जो कल रात था उसने बचा रखा 

चलेगा बिना रुके वो तब तक, देंगे साथ पांव जब तक
जान बच जाए शायद, है गांव में रिश्तों का लगाव जब तक

गरीब दशकों से मर रहा, ऐसी भयावह बीमारी से
मगर अब वो मरना नहीं चाहता, भूख की लाचारी से 
डर है उसे, बीमारी से पहले, ना मार दे भूख उसे
पर मुमकिन है मार दे, थके पांव का, दुख उसे

वो  सड़क से गिड़गिड़ाया, ले चल मुझे गांव तक  
अपनेपन के बरताव तक, रिश्तों के लगाव तक
सड़क बोला मैं नहीं चलता दौड़ता
मुझ पर दौड़ती है देश की तरक्की 
तरक्की ! 
शहर ने कितनी तरक्की कर ली
रोटियां बंटी, हजारों ने धक्कामुक्की कर ली

तरक्की -मतलब, ट्रेनें कारें मेट्रो, और रफ्तार
मगर वह सब ठप पड़ी, हंस रही है उस पर 
देख तू मुझसे, गांव तक नहीं जा सकता

तरक्की की बड़ी बड़ी इमारतें, हंस रही है उस पर
देख तू मुझमें, अपना दुख नहीं छिपा सकता
 पांच सितारा होटल, हंस रहा हैं उस पर
देख तू मुझसे, अपनी भूख नहीं मिटा सकता

सुखी आंखो से टपके, आंसुओ की बूंदे मोटी मोटी
तरक्की बांटता शहर, जानता क्यों नहीं, बांटना रोटी 

किसी की बीमारी ने जान ली, कुछ मर गए भूख से 
कुछ मर गए, इस डर से, कि वो मर ना जाए भूख से
जो करती नहीं, बीमारी भी शायद, किया भूख ने, गरीब का दुर्दशा वो
ठहरा शहर, देखता रहा तमाशा, पैदल चलता चलता चल बसा वो
#Poetic_Pandey सड़क पर निकले तो, ताक में बैठी, भयंकर बीमारी  है
आग लगी है पेट में, गरीब पर, भूख की विपदा भारी है

सुरक्षित है वो, जो घर में ही रुक गया 
गरीब भूखा, जाके हर दर पर झुक गया

वैसे तो उसे कहते है, अनपढ़ सब मगर
मगर बड़ी बात सूझी, उसे बीती रात में
सड़क पर निकले तो, ताक में बैठी, भयंकर बीमारी  है
आग लगी है पेट में, गरीब पर, भूख की विपदा भारी है

सुरक्षित है वो, जो घर में ही रुक गया 
गरीब भूखा, जाके हर दर पर झुक गया

वैसे तो उसे कहते है, अनपढ़ सब मगर
मगर बड़ी बात सूझी, उसे बीती रात में
जो गाड़ियां छिड़क रहीं, दवाईयां गली गली
साथ क्यों नहीं लाती, कुछ रोटियां भी साथ में

हमसे घर में सुकून से, बैठा भी नहीं जा रहा 
मजबूर शहर से, गांव को पैदल चला जा रहा 
कंधे पर डेढ़ साल का, है उसने बीमार बच्चा रखा 
हाथ में सुखी रोटी, जो कल रात था उसने बचा रखा 

चलेगा बिना रुके वो तब तक, देंगे साथ पांव जब तक
जान बच जाए शायद, है गांव में रिश्तों का लगाव जब तक

गरीब दशकों से मर रहा, ऐसी भयावह बीमारी से
मगर अब वो मरना नहीं चाहता, भूख की लाचारी से 
डर है उसे, बीमारी से पहले, ना मार दे भूख उसे
पर मुमकिन है मार दे, थके पांव का, दुख उसे

वो  सड़क से गिड़गिड़ाया, ले चल मुझे गांव तक  
अपनेपन के बरताव तक, रिश्तों के लगाव तक
सड़क बोला मैं नहीं चलता दौड़ता
मुझ पर दौड़ती है देश की तरक्की 
तरक्की ! 
शहर ने कितनी तरक्की कर ली
रोटियां बंटी, हजारों ने धक्कामुक्की कर ली

तरक्की -मतलब, ट्रेनें कारें मेट्रो, और रफ्तार
मगर वह सब ठप पड़ी, हंस रही है उस पर 
देख तू मुझसे, गांव तक नहीं जा सकता

तरक्की की बड़ी बड़ी इमारतें, हंस रही है उस पर
देख तू मुझमें, अपना दुख नहीं छिपा सकता
 पांच सितारा होटल, हंस रहा हैं उस पर
देख तू मुझसे, अपनी भूख नहीं मिटा सकता

सुखी आंखो से टपके, आंसुओ की बूंदे मोटी मोटी
तरक्की बांटता शहर, जानता क्यों नहीं, बांटना रोटी 

किसी की बीमारी ने जान ली, कुछ मर गए भूख से 
कुछ मर गए, इस डर से, कि वो मर ना जाए भूख से
जो करती नहीं, बीमारी भी शायद, किया भूख ने, गरीब का दुर्दशा वो
ठहरा शहर, देखता रहा तमाशा, पैदल चलता चलता चल बसा वो
#Poetic_Pandey सड़क पर निकले तो, ताक में बैठी, भयंकर बीमारी  है
आग लगी है पेट में, गरीब पर, भूख की विपदा भारी है

सुरक्षित है वो, जो घर में ही रुक गया 
गरीब भूखा, जाके हर दर पर झुक गया

वैसे तो उसे कहते है, अनपढ़ सब मगर
मगर बड़ी बात सूझी, उसे बीती रात में