मुझे भुलाकर वो खुश लगता हैं उतना ही खुश जितनी कि मैं मैंने रख छोड़ा था सबकुछ उसके लिए अब वहां कोई नहीं है हां दीवारों पर टंगे हैं चंद लम्हे, भीगी रातें, सीले दिन बर्फ से अकड़े जज़्बात और बारिशें ... वह सब भी मैं उठा लाई हूं अब याद दिलाने को कुछ भी नहीं है उसके पास सिवाय उन रिश्तों के जो उसके बने रहते तो शायद कुछ रहता नहीं भूलने भुलाने के लिए... ज़िंदगी के सफ़र में गुज़र जाते हैं जो मक़ाम...