मैं कालिदास तो नहीं हूं किंतु ,इतना अवश्य प्रयत्न करूंगा मन की यक्ष वेदना को, मेघो के संग तुम्हारे नगर भेजूंगा। बूंद बूंद की पाती पढ़ना, फिर अंजुली से बहा देना देना तुम भी संदेसा अपना, पर मेरी पीर कह जाने देना, अश्रु भरे नयनों में, रिक्त स्थान थोड़ा पर रखना वहां बसने को स्वप्न मिलन का, प्रवर भेजूंगा मैं कालिदास तो नहीं हूं किंतु ,इतना अवश्य प्रयत्न करूंगा मन की यक्ष वेदना को, मेघो के संग तुम्हारे नगर भेजूंगा। //निरंतर #लोकेंद्र की कलम से