शहरो में तो भीड है लोग चलते ही रहते हैं यह केहना कुछ थम सा गया है, घर में रहने की नौोबत आयी है, खुंशीया जैसे अदृश्य है, चलने वाले पाव आज बंद दरवाजे रूके हैं गली-मोहल्लों अब शोर नहीं होता, वो सडके भी बत्तर दिखाई देते हैं जहां इन्सान नहीं होता, अमीर- गरीब अब कोई फर्क नहीं अब अपना पराया नहीं होता , जरूरी है कि सब जल्दी ठीक हो जाए, शोर फिर से हो जाए , खुशी से झूम उठ जाए , ये जहां अब कोई रूक न पाए. #रूक न जाए