ख्वाहिश तो मेरी भी थी कि मैं स्कूल जाऊँ, ख्वाहिश तो मेरी भी थी कि मैं अच्छे अच्छे दोस्त बनाऊँ, ख्वाहिश तो मेरी भी थी कि मैं पढ़-लिखकर नाम कमाउं, ख्वाहिशें तो बहुत थीं मैं सब कैसे तुम्हें गिनाऊँ! मजबूरी समझती हूँ माँ-बाप की इसलिए ख्वाहिशों को दबा रही हूँ, ईटों को पाथ-पाथकर खुद झोपड-पट्टी में रहकर, लोगों का महल बनवा रही हूँ। कलम- आकाश वर्मा ✍ ख्वाहिशों को दबा रही हूँ...!! #Gareebi #dard #adhoorekhwaab #badnaseebi #Mywords #akashverma #zindgi