दुविधा... एक लघु कथा Bloody Man की डायरी से Doctor ashok vaid मेरे एक परम मित्र हैं,कैंसर विशेषज्ञ,। जून महीने की तपती दिल्ली की दोपहर में, राजीव गांधी हॉस्पिटल से फोन करते हैं, यार एक पेशेंट है, critical है, प्लेटलेट्स चाहिएं कुछ करो ना। आदत से लाचार,किसी को अनुरोध करने की बजाय चल पड़ता हूं, 25 मिनट बाद पहुंचा सीधा डोनेशन रूम में, बता दूं कि प्लेटलेट्स डोनेशन ब्लड डोनेशन से अलग प्रक्रिया है,1.5से2.5 घंटे भी लगते हैं इसमें, हमारे रक्त को एक सेप्रेटर में भेज उसमे से प्लेटलेट्स निकल कर शेष रक्त वापिस शरीर में भेज दिया जाता है। खैर हुआ यूं कि मेरे डोनेशन की प्रक्रिया में ही पेशेंट ने dam तोड़ दिया, आधे से ज्यादा प्रक्रिया हो चुकी थी, तो कुछ उदास से मन से us donation को पूरा किया। रिफ्रेशमेंट सामने रखी मन था नहीं मगर कुछ खाना जरूरी था, अचानक दो लोग मेरे सामने आते हैं, दोनो के ही पेशेंट वहां एडमिट हैं, दोनो को प्लेटलेट्स की ज़रूरत है। मुझसे कहा गया कि आपका ये डोनेशन हम सो एंड so patient ko दे दे क्या? मुझे कुछ अटपटा सा लगा, एक को मिल जायेगा तो दूसरा...? डॉक्टर vaid आते हैं, मेरी समस्या को समझते है और बताते हैं कि जिसको हम देना चाह रहे हैं वो भी क्रिटिकल है, दूसरे वाले की प्लेटलेट काउंट अभी अलार्मिंग नहीं.... आज नहीं तो कल चाहिए तो होगा न इसे भी?