हार गई है मेरी कविता धुंध से लड़ते लड़ते टूट गया है मेरा हौंसला रेत पे चढ़ते चढ़ते सब फ़ानी है ,रंग रज़ा सब ,नूर के किस्से झूठे हैं ढाँक रहा हूँ, जैसे तैसे, नासूर पके जो फूटे हैं अच्छा लगता है,दर्द के ऊपर, वर्क धूप का मढ़ते हार गई है मेरी कविता धुंध से लड़ते लड़ते दीमक गहरा चाट रही है, और रूह अंगारा है मुस्कानों से पाट रहा हूँ, आसमान जो ख़ारा है एक दिन फ़ालिज पड़ जाएगा,हिम्मत सड़ते सड़ते हार गई है मेरी कविता धुंध से लड़ते लड़ते बिखर रहा है मौन भी मेरा और ज़ुबाँ पर रात है रफू किए रेशम से मैंने फटा हुए ज़ज़्बात है मर्ज़ मुक़द्दर बन जायेगा एक दिन बढ़ते बढ़ते हार गई है मेरी कविता धुंध से लड़ते लड़ते ना कुछ खोने को हैं बाँकी, ना पाने की आस है और सजा कर रखी मैंने, ये जो मेरी लाश है ज़ार ज़नाज़ा हुआ कब्र ख़ुद, रोज़ फ़ातिहा पढ़ते हार गई है मेरी कविता धुंध से लड़ते लड़ते हार गई है मेरी कविता धुंध से लड़ते लड़ते टूट गया है मेरा हौंसला रेत पे चढ़ते चढ़ते ~हार ©Mo k sh K an ~हार #Pain #Nostalgia #Painful #lost . #Heart #mokshkan #Melencholy