शुक्र है ख़ुदा का कि, तुमको नज़्म/शायरी या कत'आत की समझ न है "हिमांश" वरना तुम्हारे दिन और रात अक्सर हर्फ़ों में निकल जाते॥ *दिन जो अब ढलता ही नहीं, ये माशूका सी रात अब सोती नहीं* ©Himanshu Tomar #समझ #दिन_रात #BakraEid