हलदर हूं मैं, परिश्रमिक भी हूं, अन्नदाता कहलाता हूं, फिर भी मुफलिस समझ कर, नाकिदीन होती है मेरी। खुली आंखो से अज्ग़ासे अहलाम देख रहे है, अब तक तो सिर्फ गम-ओ-जुल्मत मिला है। लफ्जों के कारोबार में ज़दा और मुरझा गया हूं, मैं ताल्लुक चाहता था, तुमने तो जुल्मत दिखा दी। धरती की धरोहर कभी भू-धर भी कहा जाता है, मेरी कठिनाइयों से सब मुतआरिफ है। पल-पल मेहनत कर में मैं उम्मीद बोता हूं, बीजारोपण करके तस्कीन होता हूं, लोग अनाज का मसीहा माने मुझे, पर अपनी हालत पर मैं खुद रोता हूं। फसल मेरी बच्चे जैसी देख बढ़ता उसे, खुशी से प्रफुल्लित होता हूं पासबाँ बन, पिता समान उनकी रक्षा करता हूं। हलदर हूं मैं, परिश्रमिक भी हूं, अन्नदाता कहलाता हूं, फिर भी मुफलिस समझ कर, नाकिदीन होती है मेरी। खुली आंखो से अज्ग़ासे अहलाम देख रहे है, अब तक तो सिर्फ गम-ओ-जुल्मत मिला है। लफ्जों के कारोबार में ज़दा और मुरझा गया हूं, मैं ताल्लुक चाहता था, तुमने तो जुल्मत दिखा दी।