क्या चाहते हो मैं चमन अपना उजाड़ दूं सोहार्द, प्रेम के शजर जड़ से उखाड़ दूं हर साल शीर लेके घर आती है नाज़िया कहते हैं प्यार से मेरे बच्चे उसे बुआ मैं कैसे नींबू चाट के मिठास झाड़ दूं नवरात में पूजी जो मैंने अम्बिका माई वो मूर्ति माँ की मियां जुम्मन ने बनाईं मैं कैसे उनके सामने सिंह सी दहाड़ दूं घर में विराजे जिसपे मेरे श्याम सुंदरम पीतल का सिंहासन वो लाय़े थे भाई असलम मैं कैसे उनकी भावनाओं को लताड़ दूं होली पे हमको देने वो जब बधाई तब याद किसी नहीं कश्मीर की आई क्यों तोड़ कर दीवार खड़ा कर पहाड़ दूं आज हमने कह दिया उन्हें जो ईद मुबारक उठने लगे सवाल कुछ ज़ह्नों में यकायक क्यों मैं गुलों को नोंचकर कांटों का झाड़ दूं