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औलिया ए क़ल्ब ये कैसी सख़ावत है तेरी क्यों ग़मों क

औलिया ए क़ल्ब ये कैसी सख़ावत है तेरी क्यों ग़मों की भीड़ को दर पे बुला लेता है तू

©मैं चराग़ों की तरफ़
औलिया ए क़ल्ब ये कैसी सख़ावत है तेरी क्यों ग़मों की भीड़ को दर पे बुला लेता है तू

©मैं चराग़ों की तरफ़