प्रभात के उजालें जग से शर्मा रहें है, खुद पर बादलों का पर्दा डाल रहें है। धीरे धीरे अंधेरों को बेजार कर रहे है, उजालों का पक्षी इंतजार कर रहे है। मेघ भी खुद को उजालें में रंग रहे है, अंधेरे संग मेघ भी धीरे से ढल रहें है। विटप लताएं मदमस्त हो झूम रही है, लहरें भी खुश हो किनारें चूम रही है। सुनहरी किरणें धारा को हर्षा रही है, प्रकृति भी खुशी के रंग दर्शा रही है। प्रभात की किरणें मन को भा रही है, चिड़िया भी गीत प्यार के गा रही है। JP lodhi #सुनहरी प्रभात