इक पतझड़ के पत्ते सी गिरकर यूँ रुक गई हूँ, इस मौसम में इसकी मैं होकर ही झुक गई हूँ, कर देता घायल जो है बीच भँवर में सभी को, उस घन से जल लेकर बनके घन अमुक गई हूँ। — 'शायरा' Chahak Moryani #nojotohindi #worldpoetryday #I #soul #search #measures